अंबाला सदर। 23 अक्टूबर। दोपहर साढ़े बारहं से तीन बजे के तक अंबाला सदर नगर परिषद् द्वारा हाल ही में सामान्य जन हेतु वाहन ठहराव हेतु खोले गए भू-तल के प्रवेश पर ताला जड़ा मिला। मैं साढ़े बारहं बजे वहां कार खड़ी करने केलिए पहुंचा तो पाया कि गेट पर ताला लगा है। पूछताछ करने पर ज्ञात हुआ कि गवर्नमेंट ने आज केलिए उसे बंद कर दिया है। पार्किंग स्थल के भीतर कुछ कारें खड़ी स्पष्ट दिखाई दे रहीं थीं। द्वार के बाहर सड़क पर भी कुछ वाहन खड़े थे। बाहर खड़े होने की वजह पार्किंग पर लगे ताले के कारण उसका बंद होना ही होगा! बाजार का काम कर तीन बजे लौटते हुए भी यथास्थिति थी। सामान्य बुद्धि में एक प्रश्न कौंधा कि पार्किंग बंद होने पर इतनी कारें पार्किंग के अंदर कैसे और क्यों खड़ी थीं? जबकि कल 22 अक्टूबर की रात 8 बजे के लगभग मैंने इक्का-दुक्का कारें ही खड़ी देखी थीं। त्यौहारी मौसम में सदर बाजार और राय मार्केट में बहुत चहल-पहल थी। वाहनों की संख्या सामान्य दिनों की अपेक्षा कहीं अधिक थी। जगह-जगह जाम की सी स्थिति बनी हुई थी। जाम का एक कारण दुकानदारों द्वारा बाजारों में अत्यधिक अतिक्रमण और साज-सज्जा भी प्रतीत हुई। ऐसे में सरकार यानी स्थानीय निकाय अंबाला सदर नगर परिषद् को वाहनों के ठहराव की विशेष व्यवस्था करनी चाहिए थी। नागरिकों को उपलब्ध पार्किंग को बंद करने का निर्णय अविवेकपूर्ण किंकर्तव्यविमूढ़ता का जीवंत प्रतीक है। अंदर कारों मौजूदगी और गेट पर ताले से संदेह पैदा होता है कि कहीं ड्यूटी पर तैनात कर्मीगण पार्किंग बंदी के अधिकृत आदेश के बिना ही फरलो पर तो नहीं गए हुए थे? सटीक स्पष्टीकरण तो अंबाला सदर नगर परिषद् प्रशासन ही दे सकता है। इतना जरूर है कि यह वाहन चालकों के लिए वाहनों के ठहराव की समस्या का एक बड़ा कारण था। इतने अधिक लोकवित्त से निर्मित पार्किंग को दीपावली जैसे त्यौहार की पूर्व संध्या पर बंद रखने का औचित्य समझ से कोसों दूर है।
कुमकुम खबरिका
रविवार, 23 अक्तूबर 2022
शुक्रवार, 16 सितंबर 2016
अंबाला
के महाविद्यालयों में
हिंदी दिवस
समारोह
अम्बाला। सभी समाचार पत्र ों के स्थानीय समाचारों
के पृष्ठों पर अम्बाला तथा
आसपास के
महाविद्यालयों में
14 सितंबर को मनाए
गए हिंदी दिवस से संबंधित समाचारों का प्रकाशन किया गया। प्रकाशित भाषा शैली तथा सामग्री से स्पष्ट ज्ञात होता है कि समाचार डेस्क
पर बैठ कर लिखे गए
हैं, जोकि महाविद्यालयों द्वारा
जारी की गई
प्रेस विज्ञप्तियों पर आधारित प्रतीत
होते हैं। संवाददाताओं द्वारा अनुसंधान और
समीक्षा का उन में नितांत
अभाव है।
प्रश्न उठता है कि महानगर अम्बाला के इन उच्च शिक्षा केंद्रों अर्थात् महाविद्या लय ों की राजभाषा व राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति क्या और कितनी प्रतिबद्धता है? ऐसे समारोहों को कितनी गंभी रता
से मनाया जाता है? इन में युवा पीढ़ी के कौन से संवर ्ग
को क्या संदेश दिया जाता है? प्राय: ऐसे कार्यक्रम हिंदी विभाग ों द्वारा हिंदी के विद्यार्थियों
हेतु ही आयोजित
किए जाते हैं। वे पहले ही हिंदी के अनुप्रयोग और महत्व से बखूबी परिचित होते हैं।
उन में से बहुतेरे युवा तो अन्यतर भाषा के अनुप्रयोग में अक्षम भी होते हैं।
यहां जिज्ञासा का विष य
यह है कि कितने महाविद्या लय ों में महाविद्यालय स्तर पर हिंदी दिवस समारोह ों का आयोजन किया गया?
महाविद्यालय स्तर से
तात्पर्य है कि हिंदी विषय व विभाग
से हट कर अन्य
विषयों व विभागों के प्राध्यापको ं
और विद्यार्थियों
की प्रतिभागिता रही हो। कितने महाविद्यालयों के विज्ञ ान तथा वाणिज्य विभागों की कक्षाओं
को स्थगित कर उन्हें इस दिन
हिंदी भाषा के
महत्व से अवगत
कराया गया? शायद ईमानदान शोध
का परिणाम शून्य ही होगा, जोकि सामान्य अवलोकन से मेल खाएगा। एक रस्म अदायगी से हट कर ये समारोह कुछ
भी
नहीं रहे होंगे।
ज्ञातव्य है कि अम्बाला के महाविद्या लय
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से
संबद्ध हैं। विश्वविद्यालय नियमानुसार
कला व मानविकी तथा
वाणिज्य के विष य ों का स्नातक
स्तर तक अध्यापन हिंदी माध्यम से किया जान ा
चाहिए। विद्यार्थी
परीक्षा के
समय प्रश्नोत्तर हिंदी या अंग्रेजी माध्यम में अपनी सुविधान ुसार दे सकते हैं। किंतु अनेक नए युवा वाणिज्य प्राध्यापक
अंग्रेजी माध्यम में व्याख्यान दे रहे हैं। वे हिंदी माध्यम से अध्यापन में
असहज अनुभव
करते हैं। उन के विद्यार्थी हिंदी शब्दावली से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं।
अंग्रेजी सुधारने के लिए लगने वाली विशेष कक्षाओं की कीमत संभवत: हिंदी को चुकानी पड़ रही है। वस्तुस्थिति
तो यह है कि ये उच्चतर शिक्षा
संस्थान अंग्रेजी सिखा नहीं
पा रहे, किंतु काफी
सीमा
तक हिंदी अवश्य भुला रहे हैं। कला व
मानविकी की स्नातक परीक्षा में अंग्रेजी के अनिवार्य विषय में आधे से अधिक
विद्यार्थी अनुत्तीर्ण रहते हैं।
इन महाविद्यालय ों के मुख्य प्रवेश-द्वारों पर लगे नाम पट्ट ों
पर तनिक दृष्टि
डालिए। अधिकांश
महाविद्यालयों के नामपट्टों से
देवनागरी लिपि में
लिखी हिंदी विलुप्त हो चुकी है। उस की जगह स्वर्णिम अक्षरों में लिखित रोमन लिपि की अंग्रेजी ने
ग्रहण कर ली है। विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग तथा
उच्चतर शिक्षा
निदेशालय हरियाणा द्वारा
अनुदानित निजी महाविद्यालयों के अतिरिक्त राजकीय महाविद्यालय का भी यही हाल है। हां, यदि इन के नाम पट्टों को उखाड़ कर कुरेदा जाए तो कुछ ेक के नीचे दफन नागरी लिपि में लिखित हिंदी
के अवशेष अवश्य मिल जाएंगे। कुछ यही स्थिति इन के आतंरिक सम्प्रेषण, पत्राचार और वेबसाइटों की है। हां, अपवाद स्वरूप,
आत्मानंद जैन कॉलेज
तथा डी ए वी
कॉलेज के मुख्य-द्वारों पर अभी
भी हिंदी सुशोभित है।
आवश्यकता, 14 सितंबर को हिंदी दिवस पर हिंदी के महिमा गान की नहीं, बल्कि उसे व्यवहार में प्रयोग कर आत्मसात करने की है।
सोमवार, 19 मई 2014
कार छोड़ कर घंटों के लिए गायब हो गए चालक व मालिक
पार्किंग सेंस
का अभाव
अंबाला। किसी अज्ञात कार चालक की सार्वजनिक मार्ग पर
वाहन खड़ा करने की समझ की कमी के कारण रविवार 18 मई और इस से पहले 4 मई को मुझे
अपने निवास से अपनी कार बाहर निकालने के लिए दोनों बार दो से तीन घंटे तक की देरी
का सामना करना पड़ा। बाद दोपहर प्रभु प्रेम पुरम स्थित निवास के प्रवेश द्वार
के ठीक आगे कार नंबर पी बी 65 जे 3117 इस प्रकार खड़ी हुई थी, कि अंदर से बाहर कार
निकालना असंभव था। लापरवाह तरीके से की गई पार्किंग का स्वयं भुक्तभोगी रहा हूं। मैं समझता हूं कि इस प्रकार का चालक कार चलाने के लाइसेंस के नवीकरण का पात्र नहीं होना चाहिए। उस
में सामाजिक उत्तरदायित्व का नितांत अभाव है। वह चालक न तो कार में बैठा हुआ था
और न ही अड़ोस-पड़ोस में कहीं था। दोनों बार वह मकान
के दरवाज़े के आगे कार खड़ी कर कहीं अज्ञात स्थान पर चला गया था। उसे इस बात की कोई चिंता या फिर उत्तरदायित्व का बोध नहीं था कि जिस मकान के द्वार के आगे कार खड़ी की गई है, उसके रहवासी को इस से कितनी असुविधा और कठिनाई हो सकती है। उसे हटाने के लिए चालक को ढूंढने हेतु आधे घंटे तक धूप में विफल प्रयास भी किए गए, किंतु उस का कुछ अता-पता नहीं लगा। शाम को कब वह अपनी कार वहां से ले कर कब चलता बना, इस का भी कोई आभास नहीं हो सका। यह भी समझ से परे है कि 22 फीट चौड़ी सारी खाली गली छोड़ कर वह प्रवेश द्वार के आगे ही अपनी कार कयों खड़ी कर गया।
ऐसे मामलों में नागरिक पत्रकारिता के माध्यम से जुटाए गए समाचारों, चित्रों व प्रमाणों के आधार पर ट्रैफिक पुलिस को चालान काट कर वाहन मालिकों के पतों पर भेजने की व्यवस्था करने की आवश्यकता अनुभव होती है। साथ ही, निश्चित बार गलती करने पर ड्राइविंग लाइसेंस का नवीकरण नहीं किया जाना चाहिए। बीमा कंपनियों को चाहिए कि बीमा के नवीकरण के समय प्रीमियम में अधिभार शुल्क वसूल करें। ज्यादातर हम भारतीय डंडे की पीर होते हैं। अपने आप किसी प्रकार नागरिक दायित्व निबाहना शान के विरूद्ध समझते हैं।
नागरिक उत्तरदायित्व के विकास के उद्देश्य से उक्त
घटना का सचित्र प्रकाशन वांछनीय प्रतीत होता है।
राजीव नास्तिक
रविवार, 18 मई 2014
इलैक्ट्रोनिक पत्रिका
कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन तथा संस्थापन ने युग और विधाओं को बदल दिया है। कोई 25 वर्ष पूर्व विद्यार्थी जीवन में जो कभी पत्रिका प्रकाशन के माध्यम से संचार की कामना तथा कल्पना की थी, आज उसे इस नि:शुल्क ब्लॉग के माध्यम से साकार करने के अवसर का लाभ्ा उठाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा। खेद है तो केवल इस बात का कि जिन के साथ कभी कल्पना की गई थी, आज उनकी बजाए नए और अज्ञात व्यक्तियों के साथ इसे संचरित करना पड़ रहा है। यही तो काल का प्रभाव है।
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