सोमवार, 19 मई 2014

कार छोड़ कर घंटों के लिए गायब हो गए चालक व मालिक

पार्किंग सेंस का अभाव
अंबाला। किसी अज्ञात कार चालक की सार्वजनिक मार्ग पर वाहन खड़ा करने की समझ की कमी के कारण रविवार 18 मई और इस से पहले 4 मई को मुझे अपने निवास से अपनी कार बाहर निकालने के लिए दोनों बार दो से तीन घंटे तक की देरी का सामना करना पड़ा। बाद दोपहर प्रभु प्रेम पुरम स्थित निवास के प्रवेश द्वार के ठीक आगे कार नंबर पी बी 65 जे 3117 इस प्रकार खड़ी हुई थी, कि अंदर से बाहर कार निकालना असंभव था। लापरवाह तरीके से की गई पार्किंग का स्‍वयं भुक्‍तभोगी रहा हूं। मैं समझता हूं कि इस प्रकार का चालक कार चलाने के लाइसेंस के नवीकरण का पात्र नहीं होना चाहिए। उस में सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व का नितांत अभाव है। वह चालक न तो कार में बैठा हुआ था और न ही अड़ोस-पड़ोस में कहीं था। दोनों बार वह मकान




के दरवाज़े के आगे कार खड़ी कर कहीं अज्ञात स्‍थान पर चला गया था। उसे इस बात की कोई चिंता या फिर उत्‍तरदायित्‍व का बोध नहीं था कि जिस मकान के द्वार के आगे कार खड़ी की गई है, उसके रहवासी को इस से कितनी असुविधा और कठिनाई हो सकती है। उसे हटाने के लिए चालक को ढूंढने हेतु आधे घंटे तक धूप में विफल प्रयास भी किए गए, किंतु उस का कुछ अता-पता नहीं लगा। शाम को कब वह अपनी कार वहां से ले कर क‍ब चलता बना, इस का भी कोई आभास नहीं हो सका।  यह भी समझ से परे है कि 22 फीट चौड़ी सारी खाली गली छोड़ कर वह प्रवेश द्वार के आगे ही अपनी कार कयों खड़ी कर गया।
ऐसे मामलों में नागरिक पत्रकारिता के माध्‍यम से जुटाए गए समाचारों, चित्रों व प्रमाणों के आधार पर ट्रैफिक पुलिस को चालान काट कर वाहन मालिकों के पतों पर भेजने की व्‍यवस्‍था करने की आवश्‍यकता अनुभव होती है। साथ ही, निश्चित बार गलती करने पर ड्राइविंग लाइसेंस का नवीकरण नहीं किया जाना चाहिए। बीमा कंपनियों को चाहिए कि बीमा के नवीकरण के समय प्रीमियम में अधिभार शुल्‍क वसूल करें। ज्‍यादातर हम भारतीय डंडे की पीर होते हैं। अपने आप किसी प्रकार नागरिक दायित्‍व निबाहना शान के विरूद्ध समझते हैं।
नागरिक उत्‍तरदायित्‍व के विकास के उद्देश्‍य से उक्‍त घटना का सचित्र प्रकाशन वांछनीय प्रतीत होता है।
राजीव नास्तिक


रविवार, 18 मई 2014

इलैक्‍ट्रोनिक पत्रिका

कंप्‍यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन तथा संस्‍थापन ने युग और विधाओं को बदल दिया है। कोई 25 वर्ष पूर्व विद्यार्थी जीवन में जो कभी पत्रिका प्रकाशन के माध्‍यम से संचार की कामना तथा कल्‍पना की थी, आज उसे इस नि:शुल्‍क ब्‍लॉग के माध्‍यम से साकार करने के अवसर का लाभ्‍ा उठाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा। खेद है तो केवल इस बात का कि जिन के साथ कभी कल्‍पना की गई थी, आज उनकी बजाए नए और अज्ञात व्‍यक्तियों के साथ इसे संचरित करना पड़ रहा है। यही तो काल का प्रभाव है।

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