अंबाला
के महाविद्यालयों में
हिंदी दिवस
समारोह
अम्बाला। सभी समाचार पत्र ों के स्थानीय समाचारों
के पृष्ठों पर अम्बाला तथा
आसपास के
महाविद्यालयों में
14 सितंबर को मनाए
गए हिंदी दिवस से संबंधित समाचारों का प्रकाशन किया गया। प्रकाशित भाषा शैली तथा सामग्री से स्पष्ट ज्ञात होता है कि समाचार डेस्क
पर बैठ कर लिखे गए
हैं, जोकि महाविद्यालयों द्वारा
जारी की गई
प्रेस विज्ञप्तियों पर आधारित प्रतीत
होते हैं। संवाददाताओं द्वारा अनुसंधान और
समीक्षा का उन में नितांत
अभाव है।
प्रश्न उठता है कि महानगर अम्बाला के इन उच्च शिक्षा केंद्रों अर्थात् महाविद्या लय ों की राजभाषा व राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति क्या और कितनी प्रतिबद्धता है? ऐसे समारोहों को कितनी गंभी रता
से मनाया जाता है? इन में युवा पीढ़ी के कौन से संवर ्ग
को क्या संदेश दिया जाता है? प्राय: ऐसे कार्यक्रम हिंदी विभाग ों द्वारा हिंदी के विद्यार्थियों
हेतु ही आयोजित
किए जाते हैं। वे पहले ही हिंदी के अनुप्रयोग और महत्व से बखूबी परिचित होते हैं।
उन में से बहुतेरे युवा तो अन्यतर भाषा के अनुप्रयोग में अक्षम भी होते हैं।
यहां जिज्ञासा का विष य
यह है कि कितने महाविद्या लय ों में महाविद्यालय स्तर पर हिंदी दिवस समारोह ों का आयोजन किया गया?
महाविद्यालय स्तर से
तात्पर्य है कि हिंदी विषय व विभाग
से हट कर अन्य
विषयों व विभागों के प्राध्यापको ं
और विद्यार्थियों
की प्रतिभागिता रही हो। कितने महाविद्यालयों के विज्ञ ान तथा वाणिज्य विभागों की कक्षाओं
को स्थगित कर उन्हें इस दिन
हिंदी भाषा के
महत्व से अवगत
कराया गया? शायद ईमानदान शोध
का परिणाम शून्य ही होगा, जोकि सामान्य अवलोकन से मेल खाएगा। एक रस्म अदायगी से हट कर ये समारोह कुछ
भी
नहीं रहे होंगे।
ज्ञातव्य है कि अम्बाला के महाविद्या लय
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से
संबद्ध हैं। विश्वविद्यालय नियमानुसार
कला व मानविकी तथा
वाणिज्य के विष य ों का स्नातक
स्तर तक अध्यापन हिंदी माध्यम से किया जान ा
चाहिए। विद्यार्थी
परीक्षा के
समय प्रश्नोत्तर हिंदी या अंग्रेजी माध्यम में अपनी सुविधान ुसार दे सकते हैं। किंतु अनेक नए युवा वाणिज्य प्राध्यापक
अंग्रेजी माध्यम में व्याख्यान दे रहे हैं। वे हिंदी माध्यम से अध्यापन में
असहज अनुभव
करते हैं। उन के विद्यार्थी हिंदी शब्दावली से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं।
अंग्रेजी सुधारने के लिए लगने वाली विशेष कक्षाओं की कीमत संभवत: हिंदी को चुकानी पड़ रही है। वस्तुस्थिति
तो यह है कि ये उच्चतर शिक्षा
संस्थान अंग्रेजी सिखा नहीं
पा रहे, किंतु काफी
सीमा
तक हिंदी अवश्य भुला रहे हैं। कला व
मानविकी की स्नातक परीक्षा में अंग्रेजी के अनिवार्य विषय में आधे से अधिक
विद्यार्थी अनुत्तीर्ण रहते हैं।
इन महाविद्यालय ों के मुख्य प्रवेश-द्वारों पर लगे नाम पट्ट ों
पर तनिक दृष्टि
डालिए। अधिकांश
महाविद्यालयों के नामपट्टों से
देवनागरी लिपि में
लिखी हिंदी विलुप्त हो चुकी है। उस की जगह स्वर्णिम अक्षरों में लिखित रोमन लिपि की अंग्रेजी ने
ग्रहण कर ली है। विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग तथा
उच्चतर शिक्षा
निदेशालय हरियाणा द्वारा
अनुदानित निजी महाविद्यालयों के अतिरिक्त राजकीय महाविद्यालय का भी यही हाल है। हां, यदि इन के नाम पट्टों को उखाड़ कर कुरेदा जाए तो कुछ ेक के नीचे दफन नागरी लिपि में लिखित हिंदी
के अवशेष अवश्य मिल जाएंगे। कुछ यही स्थिति इन के आतंरिक सम्प्रेषण, पत्राचार और वेबसाइटों की है। हां, अपवाद स्वरूप,
आत्मानंद जैन कॉलेज
तथा डी ए वी
कॉलेज के मुख्य-द्वारों पर अभी
भी हिंदी सुशोभित है।
आवश्यकता, 14 सितंबर को हिंदी दिवस पर हिंदी के महिमा गान की नहीं, बल्कि उसे व्यवहार में प्रयोग कर आत्मसात करने की है।